Sunday, September 6, 2009
ठहराव पत्ते पर ठहरी हुई ओंस, ठहरे रहने के सुख से ओत प्रोत है एक क्षण होता है जहाँ ठहरे रहनें का सुख इतना तीव्र होता है कि, सुख संभल नहीं पाता और ठहर नहीं पाता पर कौन है ऐसा जो इसकी खातिर अपनी ज़िंदगी का ज़हर नहीं खाता ? पत्ते पर ठहरी हुई ओंस लीन है, पत्ते के साथ एक समागम में यह अभी ढर जाएगी पर वह जानती है कि इस पल में, वह जिन्दगी जी जाएगी भले ही लोग समझे तो समझे कि वह मर जाएगी --------------------------------------------------------------------------------------------------
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