Sunday, September 21, 2008

खिसल पट्टी (कविता)-------- गोविंद कुमार "गुंजन''

खिसल पट्टी -------- गोविंद कुमार "गुंजन''

बच्चे खेल रहे हैं पार्क में
खिसल रहे हैं खिसल पट्टी पर
मां-बाप खुश हो रहे हैं

नगर पालिका
नये नये नागरिक गढ़ रही है ,
युगानुरूप समाज की नींव पड़ रही है
बचपन से ही सिखाया जा रहा है कि
ऊचे जाने के बाद नीचे फिसल जाने में क्या मजा आता है

बच्चा बढ़ता जाता है
खिसल पट्टी का रूप बदलता हुआ पाता है
कभी खिसल पट्टी कुर्सी मे तब्दील हो जाती है
कभी चरित्र कभी संस्कृति कभी रिश्ते में

धन्य है यह नागरी सभ्यता
जो फिसल जाने को भी खेल बना देती है
यह खिसल पट्टी
एक क्षण भी रूकी हुई नहीं है ,
इसलिए
इस पूरी सदी के फैले हुए नर्क में
इतनी गिरावट के बावजूद
आदमी की ऑखें झुकी हुई नहीं है ।

माँ और मौसी के बीच झगड़ा ड़ालती संकीर्णता !

हम तो मराठी और हिन्दी का सम्मान माँ और मौसी के रूप में करते आए हैं। ये राज ठाकरे कौन हैं, जो हमारी माँ और मौसी को एक-दूसरे से काटकर हमारी भारतीयता पर प्रहार करने का दुस्साहस कर रहे हैं?................................ गोविंद कुमार "गुंजन"





मेरा जन्म महाराष्ट्र के खानदेश स्थित रावेर नाम के तालुका में हुआ था। ननिहाल मराठी भाषी था और मेरा पैतृक परिवार गुजराती भाषी। आज से लगभग सत्तर-पचहत्तर वर्ष पहले मेरी मराठी भाषी माँ का विवाह गुजराती परिवार में हुआ था। उन दिनों भी भाषा कोई व्यवधान या विवाद का कारण नहीं थी। अब भी नहीं है। मेरी माँ मराठी के साथ हिन्दी और गुजराती भाषाएँ सहजता से बोल लेती थी। दोनों परिवारों की भिन्ना-भिन्ना भाषाएँ होने के बावजूद हमें कभी ऐसा नहीं लगा कि हम लोग अलग-अलग हैं।
मेरा बचपन मध्यप्रदेश के सनावद में गुजरा, जहाँ हमारे पिता और दादा का लोहे का व्यवसाय था। हमारा पूरा कस्बा हिन्दी भाषी था, बावजूद इसके यहाँ भिन्ना-भिन्ना मातृभाषाओं वाले परिवारों की कमी नहीं थी। मेरे मित्रों के घर निमाड़ी भी बोली जाती थी। हिन्दी भी, मराठी भी, कुछ परिवारों में मालवी भी जीवंत थी। उर्दू, पंजाबी भाषी और सिंधी परिवारों से भी सबकी आत्मीयता थी। हमें कभी लगा ही नहीं कि घरों में अलग-अलग मातृभाषाओं में बोलने वाले और घर से बाहर निकलते ही हिन्दी में बोलते-बतियाते और लिखते-पढ़ते हुए हम- 'हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा' की तस्वीर कैसे और कितनी सहजता से बन जाती थी। महाराष्ट्रीयन कोंकणस्थ मराठी भाषी येवतीकर परिवार में जन्मी क्रांति आज गुजरात में प्रतिष्ठित हिन्दी कवयित्री के रूप में सम्मानित हैं और हिन्दी की अनथक सेवा कर रही है। वर्तमान में मैं खंडवा में रहता हूँ, जहाँ मराठी के अप्रतिम नाटककार साहित्यिक परिवार में जन्मे डॉ. निशिकांत कोचकर हिन्दी की सेवा में लगे हुए हैं। मेरे मित्र सुधीर देशपांडे मराठी भाषी होते हुए भी हिन्दी के साहित्य जगत में प्रेम पाते हैं। दीपक चैतन्य जैसे वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हिन्दी में उपन्यास लिख रहे हैं और बाबा आमटे पर भी काम कर रहे हैं।
मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर तो मराठी संस्कृति का गढ़ रही है, जहाँ कभी होलकरों का शासन रहा परंतु आज भी बड़ी तादाद में मराठी भाषियों के बावजूद मराठी लोग इंदौर को 'इंदूर' नहीं कहने पर किसी को प्रताड़ित नहीं करते। इंदौर से निकलने वालेअखबारों की गौरव गाथा का आधार हिन्दी ही है। मराठी और हिन्दी ही नहीं, मध्यप्रदेश में गुजराती, मारवाड़ी, सिन्धी, उर्दू और पंजाबी सहित कितनी ही भाषाएँ अपने अस्तित्व को लेकर किसी दूसरी भाषा से खतरा महसूस नहीं करतीं। देश के अन्य अंचलों में भी यह होता रहा है।भाषा की भिन्नाता को आपस में वैमनस्य नहीं पैदा करना चाहिए।
मुंबई (पूरे महाराष्ट्र में नहीं) में अब राज ठाकरे मराठी के बड़े हितैषी बनने का दावा कर रहे हैं। उनकी भाषा और शैली धौंस और धमकी की भाषा है। वे मराठी की लाठी से हिन्दी बोलने वालों का सिर फोड़ देने पर आमादा हैं। जया बच्चन के मात्र इतने से बयान पर कि वे हिन्दी में ही बोलेंगी, वे इतने बौखलाए कि उन्होंने घोषणा ही कर दी कि मुंबई में बच्चन परिवार की फिल्में नहीं चलने देंगे। बच्चन परिवार द्वारा विज्ञापन की गई वस्तुओं का भी बहिष्कार करेंगे। यह धमकी से भरी भाषा प्रजातांत्रिक मूल्यों का खुला उपहास है।
यह कानून और राज्य व्यवस्था को भी आतंकवादी शैली में चुनौती है। इस सबके अतिरिक्त यह राष्ट्रभाषा हिन्दी का भी अपमान है। राज ठाकरे यह भूल रहे हैं कि जिसे वे 'गुड्डी बुड्ढी हो गई पर उसे बोलना नहीं आया' बता रहे हैं, वह गुड्डी हिन्दी के अप्रतिम साहित्यकार डॉ.हरिवंशराय बच्चन की बहू भी हैं जिसे हिन्दी बोलने पर लांछित करते हुए वे पूरे हिन्दी जगत को ही तो लांछित कर रहे हैं। मुंबई की जो आज शान है, उस शान और समृद्धि के पीछे हिन्दी फिल्मों का, फिल्म इंडस्ट्री का क्या योगदान है यह दुनिया में किसी से छिपा नहीं है। लता मंगेशकर और आशा भोंसले की विश्वव्यापी कीर्ति उनके हिन्दी गीतों की बदौलत ही नहीं तो किसके बूते पर है? क्या उन्हें 'मराठी गायिकाएँ' बनाया या बताया जा सकता है? पं. भीमसेन जोशी क्या हिन्दी में नहीं गाते? क्या सुरेश वाडकर से लेकर सुदेश भोंसले तक मराठीसंगीत तक सीमित हैं? राज ठाकरे किस मराठी की बात कर रहे हैं, जो हिन्दी विरोधी हैं? हम तो मराठी और हिन्दी का सम्मान माँ और मौसी के रूप में करते आए हैं। ये राज ठाकरे कौन हैं, जो हमारी माँ और मौसी को एक-दूसरे से काटकर हमारी भारतीयता पर प्रहार करने का दुस्साहस कर रहे हैं? क्या महाराष्ट्र में हिन्दी का विरोध करके बॉलीवुड का मराठीकरण संभव है? क्या मुंबई के मुन्नााभाई मराठी में गाँधीगिरी करेंगे? महात्मा गाँधी गुजरात के थे। सरदार पटेल भी गुजराती थे। क्या उन्हें हिन्दी गुजराती की शत्रु लगती थी? क्यामहाराष्ट्र के तिलक हिन्दी विरोधी थे? या तिलक और गाँधी राज ठाकरे से कम समझदार लोग थे जिन्हें अपनी मातृभाषा के लिए हिन्दी का खतरा नजर नहीं आता था?
राज ठाकरे से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या महाराष्ट्र का विकास सिर्फ मराठी बोलकर ही संभव है? क्या महाराष्ट्र के निर्माण में बिहार और उत्तरप्रदेश के मेहनतकश मजदूरों की कोई भूमिका नहीं है? क्या वहाँ के व्यवसाय को विश्वस्तरीय गरिमा देने में वहाँ के पारसियोंऔर गुजरातियों की कोई भूमिका नहीं है? क्या ये सारे लोग अपनी-अपनी मातृभाषाओं के झंडे लेकर दूसरों को अपनी-अपनी भाषा में दीक्षित करने के लिए मरने-मारने पर उतारू हैं?
एक बात हमें सदा याद रखना चाहिए कि भाषा या धर्म को जो लोग राजनीति का मोहरा बनाते हैं, वे मानवता पर घातक प्रहार करने के ही दोषी होते हैं। भाषा या धर्म के आधार पर जो लोग प्रजातंत्र की जड़ों पर प्रहार करने में लगे हैं उन्हें यदि हमारी शासन व्यवस्था सहन करती है तो यह राजनीतिक कायरता है। यह संकीर्णता हमें कहाँ ले जाएगी ?